कुछ दिन पहले की बात है : मैं दिल्ली की मेट्रो ट्रेन में GTB Nagar से ANVT ISBT की ओर जा रहा था जब मैंने एक लड़के को यह कहते हुए सुना “मम्मी किस दिन काम आएगी, वैसे भी वो खाली बैठी रहती है!” . उस लड़के का ये कथन अपने शर्ट के टूटे हुए बटन के ऊपर था जिसको उसके दोस्त ने दिखाया था .
ऐ मेरे दोस्त , तुम्हे माँ की कीमत का जरा सा भी अंदाजा नहीं है , जो तुम माँ को बस इस काम के लायक समझते हो . क्या तुम भूल गए , जब तुम एक नन्हे से फरिस्ते थे तब से आज तक , जब तुम तक़रीबन २३ -२४ साल के नौजवान हो चुके हो , हर घडी तुम्हारी परवरिस तुम्हारी माँ की ममता से हुइ है . तुम चाहे जितने भी उचे उचे छलांग लगालो , चाहे जितनी भी डिग्रीयां लेलो , पर तुम माँ की ममता से बड़े कभी नहीं बन सकते . तुम चाहे जितने भी कोसिस कर्लो , कभी भी माँ का क़र्ज़ अदा नहीं करसकते .
ये सब बातें तो सभी ने जाना है एवं समझा है , पर सायद तुमने कभी इन पर अमल नहीं किया . माता की महत्ता तो केवल उस फिल्मी डायलोग से ही पूरी की पूरी उजाहर हो जाती है - “आज मेरे पास माँ है , तेरे पास क्या है ?” क्या तुम्हे ये भी नहीं पता था ?
मुझे बड़ी ख़ुशी होती अगर तुमने उन वाक्यों की जगह कुछ ऐसा कहा होता , “मैं तो माँ का नटखट गोपाल हूँ , कुछ शरारत ना करूँ तो माँ का खाना कैसे हजम होगा !”
P.S.:
अंतररास्ट्रीय माँ दिवस के पवित्र संध्या में लिखी ये ब्लॉग पोस्ट सभी लायक बेटेबेटियां एवं भगवान् से बड़ी माँ को समर्पित (On May 13, 2012)
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