Tuesday, June 12, 2012

भला किसीका करनासको तो...


"भला किसीका करनासको तो बुरा किसीका मत करना
पुष्प नहीं बन सकते तो तुम कांटे बनकर मत रहना"

मैंने अपने जीवनके अभी तक के २५ सालोंमें बहोतसी अच्छी शिक्षा पाई है। पर सब में अनुपम मुझे ये साधारण सी किन्तु अत्यंत अलौकिक दोहा हि लगती है। ये साधारण है परन्तु हम सब इसको नहीं निभाते है। वेद, पुराण, शास्त्र सब यह सिखातें है की अच्छे कर्म करो, अच्छाई का साथ दो। पर सायद आजके ज़माने में ये थोड़ी Outdated सी लगती है। आजकी सदिमें तो अच्छाई करने वाले कम और बुरा चाहने वाले ज्यादा होगये है।

इस भजन, दोहे या फिर श्लोक ने मेरे मस्तिष्क एवं मनमे बेहद गहरा स्थान बनाकर रखा है। ये दो वाक्यों ने पूरी की पूरी इंसानियतको समेटलिया है। केवल इतना हि नहीं, मुझे तोह ऐसा भी लगता है की यदि पृथ्वीके संपूर्ण प्राणी मात्र इस पर अमल करें तो सायद ये धरती में हि स्वर्गकी अनुभूति दिलादे।

कहते है, सच्चाई की हमेसा जीत होती है। पर मुझे सच्चाई की जीत की उतनी परवाह नहीं जितनी अच्छाईकी की है। कभी कभी झुटके सहारे भी किसीकी भलाई करनेका अवसर प्राप्त होता है।

कुछ साधारणसे नुस्खे:
  • ·        मीठी बोली
  • ·         सही सुझाव
  • ·         Zero ईर्ष्या
  • ·         सद विचार
  • ·         निसंकोच मन


सायद ये आप सभीको पता भी हो। समझ लेना की मैंने एकबार refresh करादी। 

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